करों में राहत के अंतर्विरोध भी देखें

 वर्तमान समय में सरकार के राजस्व दबाव में हैं। इस समस्या से निदान के लिए सरकार द्वारा इनकम टैक्स का विस्तार करने का विचार है और जीएसटी को सरल बनाने का प्रयास किया जा रहा है। अर्थव्यवस्था में दो प्रकार के टैक्स होते हैं- पहला प्रत्यक्ष कर या इनकम टैक्स होता है। यह सीधे व्यक्ति द्वारा अर्जित आय से लिया जाता है। इस प्रत्यक्ष कर या इनकम टैक्स को आमतौर पर जनहितकारी माना जाता है, चूंकि यह टैक्स उन्हीं लोगों से वसल किया जाता है, जिनकी आय ज्यादा होती है। जैसे वर्तमान में जिसकी आय तीन लाख रुपये से ज्यादा होती है, उसे ही केवल इनकम टैक्स अदा करना पड़ता दूसरे प्रकार का टैक्स जीएसटी या अप्रत्यक्ष कर होता है। इसे अप्रत्यक्ष इसलिये कहा जाता है कि यह करदाता को दिखता नहीं है। जैसे आपने यदि हवाई चप्पल खरीदी, उसके ऊपर जीएसटी दिया तो आपको यह स्पष्ट नहीं दिखता कि आपने कितनी रकम टैक्स के रूप में अदा की। आपका मूल ट्रांजेक्शन चप्पल खरीदने का है, न कि टैक्स देने का। इसलिये इसे अप्रत्यक्ष कर कहा जाता है। वर्तमान में सरकार के कुल राजस्व में इनकम टैक्स का हिस्सा मात्र 5 प्रतिशत है। सरकार का प्रयास है कि इसे बढ़ाकर 18 प्रतिशत कर दिया जाये। इनकम टैक्स की वसूली में वृद्धि की जाये। माना जाता है कि इनकम टैक्स की वसूली में वृद्धि करने का ज्यादा प्रभाव अमीरों पर पड़ेगा, इसलिये इनकम टैक्स की वृद्धि को जनहित काय माना जाता है। दूसरी तरफ इनकम टैक्स का हिस्सा 5 प्रतिशत से 18 प्रतिशत हो जाने से उसी के अनसार कल राजस्व में जीएसटी का हिस्सा घटेगा. जिसे भी जनहितकारी माना जाता है क्योंकि जीएसटी आम आदमी द्वारा खपत की गई वस्तुओं पर अदा किया जाता है। इस प्रकार इनकम टैक्स में वद्धि का दो प्रकार से जनहितकारी प्रभाव दिखता है। पहला कि अमीरों द्वारा इनकम टैक्स अधिक अदा किया जायेगा। दसरा कि आम आदमी द्वारा जीएसटी कम अदा किया जायेगा। लोकन गहराई से पड़ताल करने पर इस कदम का प्रभाव कछ और ही दिखता है। वर्तमान में देश के केवल 4 प्रतिशत लोग जो सबसे ज्यादा अमीर हैं. इनकम टैक्स अदा करते हैं। सरकार का प्रयास है कि इसे बढाकर 18 प्रतिशत लोगों को इनकम टैक्स के दायरे में लाया जाये। जो अमीरतम हैं, वे तो इनकम टैक्स के दायरे में अभी ही हैं। अत: जिन नये लोगों को इनकम टैक्स के दायरे में लाया जायेगा. वह अमीरतम से नीचे अथवा मध्य वर्ग के होंगे। साथ-साथ सरकार का प्रयास है कि इनकम टैक्स की अधिकतम दरों में कटौती की जाये। अब इनका प्रभाव देखिये। इनकम टैक्स की अधिकतम दर में कटौती से अमीरतम लोगों को लाभ होगा क्योंकि वे यदि आज अपनी आय का तीस प्रतिशत दे रहे हैं तो कल वे 25 प्रतिशत देंगे। दूसरी तरफ मध्य वर्ग के लोगों को इनकम टैक्स में लाने से भी आम आदमी पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। वह आज तक इनकम टैक्स नहीं अदा करता था। अब उसे इनकम टैक्स अदा करना पड़ेगा। इस प्रकार मूल रूप से इनकम टैक्स जनहितकारी होने के बावजूद उसमें जो प्रस्तावित सधार हैं, वह आम आदमी के लिए हानिप्रद हैं। जैसे गांव में यदि बस सेवा की शुरुआत हो तो वह जनहितकारी दिखता है लेकिन यदि बस में बैठने की छूट केवल अमीरों को हो तो वही बस सेवा जनहितकारी नहीं कही जा सकती। इसी प्रकार अमीरों के लिये इनकम टैक्स की दर कम करना और मध्य वर्ग को इनकम टैक्स में लाना वास्तव में जनहितकारीनहीं है। यद्यपि इनकम टैक्स का मूल चरित्र जनहितकारी होता हैइसी प्रकार जीएसटी की भी गम्भीरता से पड़ताल करनी चाहिए। सरकार का प्रयास है कि जीएसटी को सरल बनाया जाये, जिससे कि जीएसटी से वसूली अधिक हो। वर्तमान में जीएसटी के पांच स्लैब हैं और अधिकतर स्लैब 28 प्रतिशत का है। इन स्लैबों में 28 प्रतिशत का टैक्स उन विशेष माल पर वसूल किया जाता है जो कि मूलतः अमीरों द्वारा खपत की जाती हैं जैसे लग्जरी कार पर । सरकार का मानना है कि जीएसटी से वसूली बढ़ाने के लिए स्लैबों की संख्या में कटौती होनी चाहिये। यदि स्लैब 5 से घटाकर 3 कर दिये जायें या 2 कर दिये जायें तो जीएसटी का कार्यान्वयन सरल हो जायेगा और सरकार को आशा है कि इसके सरल होने से जीएसटी की वसूली बढ़ेगी। जीएसटी की वसूली बढ़ने को आमतौर पर जनहितकारी कहा जा सकता है। सरकार का प्रयास है कि कुल राजस्व में जीएसटी का हिस्सा कम किया जाये। जीएसटी का हिस्सा वसूल करने में सरकार को जीएसटी की दरें घटानी पड़ेंगी। यदि यह दरें सभी माल यानी लग्जरी कार और हवाई चप्पल जैसी सभी वस्तुओं पर घटा दी जायें तो इसका जनहितकारी प्रभाव होगा क्योंकि सभी को कम जीएसटी अदा करना पड़ेगा। लेकिन सरकार का प्रयास है कि जीएसटी का हिस्सा कम करते समय विशेषकर जो ऊंचे स्लैब हैं, उसमें कटौती की जाये। यानी जीएसटी की वसूली में जो कमी आयेगी, उसका लाभ केवल अमीरों को होगा जैसे लग्जरी कार खरीदने पर। इस प्रकार यद्यपि जीएसटी मूल रूप से आम आदमी के लिये हानिप्रद होता है, चूंकि उसे जीएसटी अदा करना पड़ता है, लेकिन वर्तमान जो प्रस्तावित जीएसटी में कटौती है, वह आम आदमी के लिए तनिक भी लाभप्रद नहीं होगी क्योंकि यह कटौती मुख्यतः अमीरों द्वारा खपत की गई वस्तओं पर की जायेगी। मल रूप से इनकम कैम्प आम आतील लाभप्रद एवं जीएसटी आम आदमी के लिये हानिप्रद होता है। इसलिये इनकम टैक्स में वृद्धि और जीएसटी में कटौती आम आदमी के लिये लाभाटोलीमा थी। लेकिन वर्तमान में सरकार द्वारा पनाति जो परिवर्तन हुए उनका परिणाम इसके ठीक विपरीत है। इनकम टैक्स में अमीरता लोगों के लिये टैक्स की दर में कटौती एवं मध्य वर्ग को इसके दायरे में लाने से इनकम टैक्स आम आदमी के लिये हानिप्रद हो जाती है। दूसरी तरफ विलासिता की वस्तुओं पर जीएसटी के स्लैब को कम करने से यह भी आम आदमी के लिये हानिप्रद हो जाती है। अतः सरकार का नकस टैक्स में वृद्धि और जीएसटी में कटौती के मंतव्य का स्वागत करना चाहिये परन्तु वर्तमान में जिस रूप में इन परिवर्तनों का कार्यान्वयन किया जा रहा है, उसका प्रभाव ठीक इसके विपरीत होगा इसलिये सरकार को इन मन्तव्यों पर पुनर्विचार करना चाहिए।